कला है अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम— डीआईओएस
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कला शिविर के समापन के दौरान प्रशिक्षुओं को संबोधित करते डीआईओएस |
8 बच्चों को ओ.पी.बिरथरे ने किया कला में प्रशिक्षित
ललितपुर। सिद्धन रोड स्थित कला भवन में प्रख्यात चित्रकार ओ.पी. बिरथरे द्वारा आयोजित नि:शुल्क कला शिविर का समापन मुख्य अतिथि वीरेन्द्र कुमार दुबे जिला विद्यालय निरीक्षक, अजय कुमार जैन पूर्व प्राचार्य की अध्यक्षता में दीप प्रजज्वलन एवं सरस्वती पूजन के साथ हुआ। एक माह से चल रहे निशुल्क शिविर की महत्तवताओं पर प्रकाश डालते हुये ओ.पी. बिरथरे ने कहा कि यह शिविर इसलिये विशिष्ट है कि चित्रकला के माध्यम से पद पैसा और प्रतिष्ठा तीनो प्राप्त किया जा सकता है। चित्रकला में दक्षता प्राप्त कर एनिमेशन, ड्राईंग और पेन्टिग, डिजाईनिंग, इलैस्ट्रेशन, एडवरटाईजिंग कम्पनी, विज्ञापन विभाग, अखबार और पत्रिका में रोजगार के तौर पर अपना सुनहरा भविष्य तराश सकते है। इस शिविर में गरीब बच्चों एवं वंचित बच्चों का ध्यान रखा गया।
मुख्य अतिथि जिला विद्यालय निरीक्षक ने पाब्लो पिकासो एवं लियोनार्डो द विंची के जीवन की घटनाओं पर परिचर्चा करते हुये बच्चों को सिद्धहस्त होने के लिये सतत अभ्यास के लिये प्रेरित किया। उन्होनें कहा कि कला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। उन्होनें इस तरह के प्रशिक्षण को माध्यमिक शिक्षकों के लिये भी आवश्यक बताया। उन्होने कहा कि बिरथरे के द्वारा किये जा रहे प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है। जहां कला जीवन को सौन्दर्यपूर्ण द्रष्टिकोण देते हुये कलुशित भावनाओं का दमन करती है। अध्यक्षता कर रहे अजय कुमार जैन ने शिविर में आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में चुने गये दस छात्र छात्राओं अनुराधा मोदी, श्रषभ दिनकर, सपना श्रीवास, शिवम राठौर, सत्येन्द्र कुमार, सौरभ यादव, कशिश साहू, आदि जैन, व्योम मालवीय, हरभजन सिंह को अपनी ओर से पुरस्कार वितरित करते हुये उनके चित्रों की भूरि भूरि प्रशंसा की। फिरोज इकबाल ने कहा कि चित्रकला में रंग रूप की अभिव्यक्ति प्रधान है और वह अन्य कलाओं से भिन्न हैं, इस तरफ के शिविर से कला साधकों को अपनी अभिव्यक्ति का पूर्ण अवसर मिलता है। जिस युग में कला का विकास हुआ वह युग इतिहास में स्वर्णयुग कहलाये। इस शिविर में जनपद के 8 छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग करके अपनी कला कौशल को निखारा। इस शिविर में गुरूकुल जैसा वातावरण देखने को मिला।
इस अवसर पर कला भवन की ओर से मुख्य अतिथि को समृति चिन्ह भेंट किया गया। समापन अवसर पर आनन्द त्रिपाठी, डा. रमेश किलेदार, गोविन्द राम सैन, पुरूषोत्तम नारायण गंगवानी, जयन्त चौबे, अवधेश त्रिपाठी, गोविन्द व्यास, सत्यनारायण तिवारी, देवेन्द्र जैन, परिवेश मालवीय, अशोक गोस्वामी आदि सहित अनेकों कला साधक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन भगवत दयाल सिंधी ने किया अन्त में आभार कलाविद ओ.पी. बिरथरे ने किया।
रिपोर्ट अमित अग्रवाल