आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने संयम के पथ पर चलकर किये 50 वर्ष पूर्ण 

ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित हुआ जग

कलिकाल के श्रेष्ठ संत हैं आचार्य

मड़ावरा ललितपुर ब्यूरो आचार्य श्रेष्ठ 108 विद्यासागर जी महाराज के 50 वें संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष व मुनिदीक्षा दिवस के अवसर पर श्री दिगम्बर जैन महासमिति इकाई मडावरा के महामंत्री शिक्षक पुष्पेंद्र जैन ने आचार्य श्रेष्ठ के दीक्षा दिवस के अवसर पर अपनी भावना को रखते हुए अपने विचार रखे। जैन दर्शन में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी के बाद श्रुतधर आचार्य सारस्वताचार्य स्थतिज्ञ प्रज्ञ आचार्य की परंपरा में हजारों दिगंबर जैन आचार्य हुए हैं जो साहित्यिक काव्य सिद्धांत, मनोविज्ञान जैसे अनेक विधाओं के विषय विशेषज्ञ हुए हैं ,इसी विशेषज्ञ आचार्यों की परंपरा में आचार्य ज्ञानसागर जी हुए हैं उनके ही शिष्य युगदृष्टा अध्यात्म सरोवर के राजहंस युगप्रवर्तक दार्शनिक साहित्यकार संतों के संत श्रमण संस्कृति के महान उन्नायक आचार्य श्रेष्ठ विद्यासागर का नाम विश्व प्रसिद्ध हो चुका है। कलिकाल की अनेक विसंगतियों के बीच आचार्यश्री विद्यासागर महाराज भारत को विश्व गुरु के रुप में पुनः स्थापित करने के लिए संकल्पबद्ध हैं, ऐसे गुरु आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन चरित्र अनेक साधकों के लिए अनुकरणीय बन चुका है। भारत की तपो-भूमि के दक्षिण दिशा के कोने पर कर्नाटक प्रांत के वेलगाँव जिले की चिकौडी तहसील के सदलगा ग्राम की सुनाम धन्य भूमि पर 10 अक्टूबर 1946 गुरुवार की रात्रि को मल्लपा अष्टगे एवं श्रीमती अष्टगे ने द्वितीय पुत्ररत्न विद्याधर को प्राप्त किया और इस रत्न को सम्पूर्ण भारत देश के लिए प्रदान कर दिया। यह उनका उपकार मात्र परिवार तक ही सीमित न रहकर राष्ट्र व्यापी हो गया है ,आज इसी का प्रतिफल है कि मल्लपा व श्रीमती जी के पुत्र रत्न एवं महावीर अष्टगे के भ्राता विद्याधर ने अपने भाई अनंतनाथ, शांतिनाथ, को मुनि योगसागर, समयसागर के रुप में समाज को प्रदान किया है ,अपने पुत्र से प्रभावित होकर मल्लपा जी मुनि मल्लिसागर बने एवं माता श्रीमती जी आर्यिका समयमति बन गई, यह एक बडा महत्वपूर्ण संयोग रहा कि पुत्र की राह पर माता-पिता दोनों चल पडे। आज तक देखने में यह आता है कि पिता के पदचिन्हों पर पुत्र चला करते हैं, किंतु आचार्य श्री विद्यासागर जी के पदचिन्हों पर उनका पूरा परिवार चल पडा। सन् 1966 में आचार्य देशभूषण जी की दिव्य पाद छाया में युवा विद्याधर ने ब्रह्मम्चर्य व्रत धारण किया कदम बढते गये और स्वाध्याय की तडपन ने एक नया मोड लिया, आचार्य देशभूषण जी की आज्ञा और सहमति से स्वाध्याय और जैन विद्या अर्जन की प्रेरणा ने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से ब्रह्मचारी विद्याधर का मिलन करा दिया, गुरू भक्त, सेवा और समर्पण से प्रभावित आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपनी वृद्ध अवस्था में भी सम्पूर्ण ज्ञानधन विद्यासागर जी को समर्पित कर 30 जून 1968 आषाढ़ शुक्ल पंचमी संवत 2025 को अपने प्रिय शिष्य विद्याधर को मुनि विद्याधर बना दिया।कन्नड भाषा में नौवीं कक्षा व मराठी भाषा से उत्तीर्ण मुनि विद्यासागर श्रेष्ठ साहित्यकार ,दार्शनिक संत बने गये। 22 नबम्बर 1972 को आचार्य ज्ञानसागर जी ने अपना आचार्य पद मुनि विद्याधर जी को सौंपकर स्वयं विद्यासागर जी के शिष्य बन गये ।इतिहास के पृष्ठ पर लिखी गई यह घटना अद्वितीय मानी गई है कि कोई गुरु अपने शिष्य का शिष्य बन जाऐं ऐसा उदाहरण कोई दूसरा नहीं मिलता है। आचार्य श्री द्वारा लिखित साहित्य  साधना में जुटे आचार्य श्रेष्ठ ने शांति सागर स्तुति से श्रीगणेश करके, वीर सागर स्तुति, आचार्य शिवसागर स्तुति, आचार्य ज्ञानसागर स्तुति लिखीं, कविताएं भी लिखी हैं जिनमें प्रमुख कन्नड़, बंगला ,अंग्रेजी हैं, आचार्य श्री की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है, आचार्य श्री ने गोमटेश अष्टक आदि रचना  लिखी हैं, इन शास्त्रों का अध्ययन करके लोग संयम के पथ पर चलकर आत्म कल्याण का मार्ग अपना रहे हैं। आचार्य श्री ने हिंदी भाषा में अनेक प्रेरणादायक साहित्य लिखा है जिसे पढकर आज मानव जीवन सफल कर रहा है उन्होंनें मूकमाटी महाकाव्य, नर्मदा का नरमकंकर, डूबोमत लगाओं डुबकी, तोता क्यों रोता, चेतना के गहराव में आदि हैं।

आचार्य श्री ने कुल 443 श्रावकों को दीक्षा प्रदान की जिनमें 120 निग्रंथ मुनिराज हैं, 172 आर्यिकाऐं, 151 ग्यारह प्रतिमाधारी क्षुल्लक, क्षुल्लिकाऐं सम्मिलित हैं एवं 400 के लगभग बाल ब्रम्हचारी व ब्रह्मचारिणी पूज्य आचार्य श्री से दीक्षा लेने के लिए कतार में लगे हुए हैं, आचार्य श्री ने 49 वर्षायोग बिताये। 

आचार्य श्री ने अनेक साधकों की साधना को देखकर उन्हें संयम के पथ पर चलने हेतु संस्कारित किया जो आज संयम के पथ पर चल रहे हैं, धन्य हो गए आज वह साधक जिन्होंने वर्तमान युग के महावीर आचार्य श्रेष्ठ विद्यासागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली है व संयम के पथ पर चल रहे हैं। आचार्य श्री की  प्रेरणा से  विविध गतिविधियां संचालित हो रही हैं। जिसमें प्रमुख रुप से बालिकाओं की शिक्षा के लिए ध्यान दिया गया है, इसी क्रम में बालिकाओं की शिक्षा के लिए देश के मात्र पांच स्थानों पर संस्थायें बनाई गयी हैं जो कि मध्यप्रदेश के जबलपुर, इंदौर, पपौरा जी टीकमगढ सहित महाराष्ट्र के रामटेक एवं छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में संचालित की जा रही हैं। प्रतिभा प्रतीक्षा छात्रावास-बालिकाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु नगरों व महानगरों में प्रतिभा प्रतीक्षा छात्रावास की स्थापना की गई है, मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट व सर्वाधिक जैन समाज वाला शहर जबलपुर में आचार्य श्री के आर्शीर्वाद  से प्रसाशनिक सेवा की तैयारी करने के लिए अखिल भारतीय प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान मढिय़ा जी जबलपुर में 12 अप्रैल 1992 में स्थापित की गई जिसमें तैयारी करके विद्यार्थी प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर अपना व संस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं, इसी के साथ ही जैनधर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वर्णी जैन गुरुकुल की स्थापना की गई है, जिसमें विद्यार्थी शोध कार्य भी कर रहे हैं व जैनधर्म की शिक्षा को ग्रहण करके धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं।आचार्य श्री के आर्शीर्वाद से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में विद्यासागर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई है जिसमें विद्यार्थी अध्यापन कार्य कर रहे हैं, मध्यप्रदेश शासन ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का गौरव बढाने के उद्देश्य से आचार्य विद्यासागर जलाशय योजना केसली में की है। आचार्य श्री के मंगल आर्शीर्वाद से भारत देश में करूणा व पशु संरक्षण, गौवंश की रक्षा के लिए लगभग 130 गौशालाएं संचालित की जा रहीं हैं जिससे हमें शुद्ध दूध मिलने के साथ ही गौरक्षा भी हो रही है। आचार्य श्री की प्रेरणा से हथकरघा योजना के माध्यम से युवाओं को स्वरोजगार मिल रहा है व खादी वस्त्रों का प्रचार -प्रसार हो रहा है।वर्तमान समय में लगभग 132 हथकरघा केंद्रों का संचालन किया जा रहा है। नवयुवकों के लिए  स्वरोजगार योजना के लिए पूरी मैत्री रोजगार योजना का संचालन भी किया जा रहा है। आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्धन व गरीबों की सेवा करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश के सागर में भाग्योदय तीर्थ पर ही भाग्योदय हास्पिटल की स्थापना भी की गई है।

आचार्य श्री के विशेष अभियान में शामिल हैं।

हिंदी भाषा उत्थान अभियान -इंडिया नहीं भारत कहो।

माँस निर्यात विरोध अभियान, हथकरघा स्वावलंबन  प्रमुख हैं।

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के विराट व्यक्तित्व में अध्यात्म, चिंतन, राष्ट्रीय स्वाभिमान, की चिंता श्रमण संस्कृति के उत्थान के लिए अनूठी सोच तथा रोजगार के क्षेत्र में युवकों को सतत मार्गदर्शन तथा गौरववान बनाते हुए पवित्र मानव जीवन की प्रेरणा के साथ निरंतर आत्म विकास की इबारत लिखते हुए अपने पचासवें संयम स्वर्ण महोत्सव को सार्थक कर रहे हैं। आचार्य श्रीज्ञानसागर जी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अर्द्ध निश प्रयासरत हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज वर्तमान युग के युग प्रर्वतक के रुप में आज संयमपथ के पचासवें वर्ष को शोभायमान कर रहे हैं आचार्य श्री की महिमा का गुणगान जितना भी किया जाऐ उतना हीं कम है उनकी महिमा का गुणगान नहीं किया जा सकता है।
रिपोर्ट अमित अग्रवाल